Sri Chamatkar Chandrika - Hindi श्रीश्री राधा गोविन्दकी लीलाके अनुपम तथा प्रवीण चित्रकारने अपने परम मधुर स्वभाववशतः प्रेमभक्तिकी सुकोमल तूलिका (चित्रकारकी कूची) में महामोहन अमृतरसको मिलाकर इस ग्रन्थ में श्रीश्रीराधाकृष्ण युगलके चार मनोज्ञ, अद्भुत तथा सुचारु मिलन कौतूहल चित्रोंको अङ्कितकर व्रजरसके लोलुप रसिक एवं भावुक पाठकों तथा साधकोंके समक्ष प्रस्तुत किया है।
ये चारों कौतूहल चित्र रस-परिवेशन, शब्द-विन्यास-चातुर्य और भाव माधुर्यसे रसिकों और भावुकोंके चित्तको चमत्कृतकर उन्हें मुग्ध करनेवाले हैं। इसके अलावा ये चारों कौतूहल हास्यरससे भी परिपूर्ण हैं, जो पाठकों और साधकोंके चित्तको हास्य रसके आनन्दरूपी सागरमें निमग्न कर देते हैं। अलङ्कारिकोंका कहना है- "रसे सारः चमत्कारः " - रसका सार चमत्कार है अर्थात् यह चमत्कारचन्द्रिका रसोंका सार है। अतएव इस ग्रन्थके चारों कौतूहलोंमें रसोंका सार प्रदर्शित होनेके कारण इस ग्रन्थका नाम 'श्रीश्रीचमत्कारचन्द्रिका' सार्थक है।
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